जीवित संन्यास दृष्टि सत्संग


 


दिनचर्या

यम और नियम के अंगों के साथ जब सादा, सरल जीवन संयुक्त होता है तो उसे वेदाचार या वैदिक जीवनशैली कहा जाता है । यह एक धार्मिक जीवनशैली नहीं, बल्कि ऐसी जीवनशैली है जिसमें जीवन के सकारात्मक एवं शांतिप्रद आयामों को महत्त्व दिया गया है, और इन आयामों को व्यक्ति की दिनचर्या में देखा जा सकता है । आप जिन चीजों को वास्तव में करना चाहते हैं, उनके लिए समय निश्चित कर देना एक अच्छी दिनचर्या को दर्शाता है । जीवनशैली वह है जिसमें आपका हृदय जुड़ता है, जिसे आप पसन्द करते हैं और जीना चाहते हैं क्योंकि उससे आपको तृप्ति और संतोष का अनुभव होता है । जीवनशैली का तात्पर्य अपने जीवन के कार्यों के प्रति भाव होने से भी है । इस भाव का आधार एक निरंतर आध्यात्मिक सजगता है जो मंत्रों के स्मरण और घर-परिवार, व्यवसाय, विश्राम आदि दैनिक गतिविधियों के नियमन से विकसित होती है । यह नियमितता संयम का एक महत्त्वपूर्ण अंश है ।

स्मरण और संयम, ये वैदिक जीवन के दो मुख्य अंग बनते हैं । संयम के अंतर्गत वाणी संयम, आहार संयम, निद्रा संयम और विचार संयम आते हैं । विचार संयम का मतलब किसी के प्रति बुरे या हिंसात्मक विचार नहीं रखना, मन को नकारात्मक प्रभावों से मुक्त रखना । इस प्रकार की सुव्यवस्था से दिनचर्या का निर्माण होता है ।

प्रात: जागने पर

जब आप सुबह जागते हैं तो प्रथम सजगता मंत्रों की होनी चाहिए, उन तनावों और समस्याओं की नहीं जिनका सामना आपको दिनभर करना होगा । मंत्रों का पाठ आरोग्य-प्राप्ति, विवेक-वृद्धि और दुर्गति-निवृत्ति के तीन सकारात्मक संकल्पों के साथ होना चाहिए । ये मंत्र हैं –

महामृत्यंजय मंत्र

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्  ।
उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्  ॥

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं  ।
भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्  ॥

दुर्गाजी के बत्तीस नाम

ॐ दुर्गा दुर्गार्तिशमनी दुर्गापद्विनिवारिणी । दुर्गमच्छेदिनी दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी ॥
दुर्गतोद्धारिणी दुर्गनिहन्त्री दुर्गमापहा । दुर्गमज्ञानदा दुर्गदैत्यलोकदवानला ॥
दुर्गमा दुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरूपिणी । दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमविद्या दुर्गमाश्रिता ॥
दुर्गमज्ञानसंस्थाना दुर्गमध्यानभासिनी । दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थस्वरूपिणी ॥
दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमायुधधारिणी । दुर्गमांगी दुर्गमता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी ॥
दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गभा दुर्गदारिणी ।

प्रात:कालीन चर्या

मन्त्रों के बाद सबेरे की नियमित दिनचर्या नित्यकर्म, स्नान आदि के साथ शुरू होती है और नाश्ते के पहले कुछ आवश्यक शारीरिक अभ्यास कर लेने चाहिए जो शरीर को फैलाने, सिकोड़ने, झुकने तथा मरोड़ने का काम करते हैं ताकि रक्त संचार सुचारू रूप से हो तथा आंतरिक अंग सक्रिय हो जाएँ । आसन एवं प्राणायाम के सरल अभ्यासों के बाद इस मंत्र की सजगता के साथ नाश्ता लिया जाता है –

ॐ ब्रह्मार्पणं ब्रह्महवि: ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्  ।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना  ।।

दिन के दौरान

प्रात:कालनीन चर्या के बाद दैनिक कार्यों में संलग्नता एवं भागीदारी की चर्या आती है । दोपहर के भोजन के समय फिर अवसर आता है जब मानसिक दबावों, तनावों और चिंताओं से हम स्वयं को दूर कर सकते हैं । भोजन का यह समय अपने ध्यान को भोजन एवं मंत्र पर केन्द्रित करने का होता है । कुछ समय के लिए मानसिक हलचल से अलग होने के लिए इस मंत्र का जप मानसिक रूप से शांतिपूर्वक किया जा सकता है ।

दोपहर के समय

योगनिद्रा

दोपहर में या दिन के कार्यों की समाप्ति के बाद जब थोड़ा समय होता है तो स्वयं को तनावों से मुक्त करने के लिए योगनिद्रा का अभ्यास कर लेना चाहिए । जैसे बाहर पहने जाने वाले वस्त्रों को उतारकर घर के कपड़े पहनने से आराम महसूस होता है वैसे ही योगनिद्रा के अभ्यास से व्यक्ति हल्का महसूस करता है और संचित तनावों से मुक्त हो जाता है ।

स्वाध्याय

थोड़े से आराम के बाद बीस या तीस मिनट के लिए स्वाध्याय किया जा सकता है । लेकिन यह स्वाध्याय जहाँ तक हो सके किसी कागज पर छपी पुस्तक से होना चाहिए, मोबाइल या किसी अन्य डिजिटल उपकरण पर नहीं । कुछ समय बाद मोबाइल आदि उपकरणों की रोशनी आँखों पर हानिकारक प्रभाव छोड़ती है । पुस्तक पढ़ने से दृष्टि क्षमता अधिक समय तक पैनी और स्वस्थ बनी रहती है । व्यक्ति को पुस्तकों के अध्ययन की आदत कभी छोड़नी नहीं चाहिए, जो स्क्रीन से पढ़ने की अपेक्षा नेत्र-स्वास्थ्य के लिए कहीं अधिक लाभदायक है । समाचार पत्र पढ़ना स्वाध्याय नहीं कहलाता, स्वाध्याय किसी आध्यात्मिक एवं प्रेरणादायक विषय का होता है । यह प्रेरक काव्य, श्रीमद् भगवद्गीता या कोई भी आध्यात्मिक ग्रंथ या साहित्य हो सकता है, जिसे आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए पढ़ा जाता है, न कि अधिक ज्ञानार्जन के लिए ।

संध्या के समय

जहाँ तक संभव हो सके भोजन एवं निद्रा का समय व्यवस्थित एवं नियमित करें, बिना किसी आडम्बर या हठधर्मिता के । शयन के पहले अपने व्यक्तिगत गुरु मंत्र अथवा अन्य किसी मंत्र का अभ्यास करने से निद्रा की गुणवत्ता बढ़ती है ।

औषधियुक्त धूम्र

हमलोगों के यहाँ परम्परा हुआ करती थी कि कोई ब्राह्मण हाथ में धूनी लिए मोहल्ले के हर घर जाता था । धूनि में गोयठा और सामग्री सुलगाकर सुगंधित धुआँ पैदा किया जाता था जिसे घर के हर कमरे में ले जाया जाता था । ज्योति और धूम्र को पहले ग्यारह बार महामृत्युंजय मंत्र के साथ एकादश रुद्रों को अर्पित किया जाता था, फिर घर में सब जगह ले जाते थे । लोगों की मान्यता थी कि यह उन्हें रोगकारक कीट-कीटाणुओं से सुरक्षित रखेगा तथा घर के वातावरण से नकारात्मक ऊर्जाओं को हटा देगा । धूनी के धुएँ का प्रयोग घरों में शुभ विचार और सद्भावना लाने के लिए तथा साथ ही स्वच्छता और शुद्धि कायम रखने के लिए किया जाता था । यदि कोई नकारात्मक ऊर्जा या प्रेतात्मा इधर-उधर मंडरा रही होती, तो धुएँ के प्रयोग से दूर चली जाती । घर के लोग बिना कोई बुरा स्वप्न देखे अच्छी, आरामदायक नींद सोते ।

शुद्ध, स्वच्छ वातावरण में रहना तथा धुएँ के माध्यम से वातावरण को शुद्ध करना एक सरल अभ्यास है जो ग्यारह बार महामृत्युंजय मंत्र के प्रयोग से ध्यान का अभ्यास बन जाता है । यह अभ्यास प्रतिदिन रात के समय सोने के पूर्व किया जा सकता है और उस औषधीय, सुगन्धमय धुएँ को घर में सब जगह शांति, स्वास्थ्य, प्रसन्नता और कल्याण के संकल्प के साथ ले जाया जा सकता है ।

साप्ताहिक चर्या

सप्ताह में एक बार सभी के स्वास्थ्य के लिए अपने घरों में एक माला महामृत्युंजय मंत्र जाप के साथ हवन करना चाहिए ।

आध्यात्मिक डायरी

आध्यात्मिक डायरी व्यक्ति के प्रयत्न और उन्नति का दर्पण है – बीते सप्ताह का, बीते माह का, बीते वर्ष का । आध्यात्मिक डायरी साधक की आन्तरिक यात्रा का मानचित्र है । व्यक्ति को अपने जीवन के सकारात्मक प्रयासों को उसमें लिखना चाहिए – निराशा, संघर्ष और उपलब्धि के क्षणों की पूर्ण सजगता के साथ । सुधार के प्रयासों और उनमें आई कठिनाइयों को विशेष रूप से उजागर किया जाना चाहिए ।

दिवस समीक्षा

दिन भर की गतिविधियों के पुन: अवलोकन को क्षण-प्रतिक्षण यौगिक सजगता विकसित करने के लिए प्रयुक्त करना चाहिए । शुरू में 12 घंटे की जाग्रत अवधि में प्रतिक्षण सजग रहना न तो संभव है न ही व्यावहारिकै, क्योंकि इसके लिए साधक प्रशिक्षित और अभ्यस्त नहीं है । फिर भी यह प्रशिक्षण दिन भर की घटनाओं को देखने से आरम्भ किया जा सकता है और इसके माध्यम से व्यक्ति अपनी क्षमताओं और कमजोरियों, सफलता और विफलता के प्रति सजग बनता है । साथ ही भविष्य में उसी प्रकार की परिस्थिति का बेहतर ढंग से सामना करने की समझ विकसित होती है ।

SWAN विश्लेषण

SWAN ध्यान के अभ्यास में अपने सभी सामर्थ्य, कमजोरियाँ, महत्त्वाकांक्षाएँ और आवश्यकताएँ लिखी जाती हैं, और फिर इस सूची में उत्तरोत्तर कुछ जोड़ने, कुछ घटाने का क्रम चलता रहता है जब तक कि अपने व्यक्तित्व का सटीक चित्र उभर कर न आ जाए । जब चित्र स्पष्ट हो जाए, तब इस अभ्यास के अगले चरण में अपने सामर्थ्यों को विकसित करने, अपनी कमजोरियों को दूर करने और अपनी महात्त्वाकांक्षाओं एवं आवश्कयताओं की पुन:समीक्षा करने के उपाय खोजे जाते हैं ।

शरीर के लिए उपवास

उपवास स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है । शारीरिक उपवास के अन्तर्गत सप्ताह में एक बार बिना नमक के भोजन करना चाहिए । बिना नमक का भोजन भी एक प्रकार का उपवास है जो व्यक्ति के स्वास्थ्य में सुधार लाएगा । नमक का उपयोग कम कर देने से अनेक बैक्टीरिया जनित संक्रमणों से बचा जा सकता है । साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ेगी ।

मन के लिए डिजिटल उपवास

मानसिक उपवास का तात्पर्य एक दिन के लिए सभी प्रकार के डिजिटल उपकरणों एवं मनोरंजन के साधनों से दूर रहने से है । जो व्यक्ति मोबाइल फोन संस्कृति में पले-बढ़े हैं उन्हें इन उपकरणों के बिना बहुत कठिनाई होती है और इन उपकरणों के उपयोग में कोई संयम भी नहीं है । लोग अपने परिवार और घर को छोड़ने के लिए तैयार हैं, लेकिन मोबाइल और फेसबुक एकाऊंट को छोड़ नहीं सकते । यह इन चीजों पर मन की अति-निर्भरता की आदत और अवस्था को दर्शाता है जो कालान्तर में निराशा और विषाद का कारण बनेंगी । इसलिए डिजिटल उपवास बहुत महत्त्वपूर्ण है । सप्ताह में एक दिन जो आपके लिए सुविधाजनक और संभव हो, एक नियम बना लीजिए कि उस दिन आप फोन पर बातचीत नहीं करेंगे और न ही किसी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का उपयोग करेंगे । केवल एक दिन के लिए एक सरल जीवन बिताने का प्रयास कीजिये – बगीचे में शर्बत के गिलास के साथ बैठकर, पत्रिका पढ़ते हुए समय व्यतीत कीजिये, इस विचार से दूर कि मैं अपने डिजिटल उपकरण के माध्यम से पूरी दुनिया से जुड़ा हूँ ।

यह दिनचर्या आपको एक ऐसी सरल जीवनशैली की झलक देगी जिसमें यम और नियम उस संयम की स्वाभाविक अभिव्यक्ति होंगे जिसे आप अपने जीवन की सभी गतिविधियों में मंत्रों के माध्यम से अपनी आंतरिक प्रकृति के साथ जुड़े रहकर जीते हैं । आप सुबह से रात तक अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित करके सही काम को सही ढंग से करने का हमेशा प्रयास करते रहते हैं । आप मंत्रों से दिन आरम्भ करते हैं और मंत्रों के साथ दिन की समाप्ति करते हैं । दिन में आप अपने सभी कार्यों को सर्वोत्तम ढंग से करने का प्रयत्न कर रहे हैं, और साथ ही बीच में विश्राम के लिए पर्याप्त समय भी निकाल रहे हैं । काम और आराम एक-दूसरे को सम्पूरित करने वाले और संतुलित हों ।

scrolltop